जंगल-के-सभ्यता

Narmada, Gujarat

Aug 10, 2022

जंगल के सभ्यता

देहवली भीली मं लिखाय पांच ठन कविता के कड़ी मं ये चउथा कविता मं, ये आदिवासी कवि हमर कहे जावत तउन महत्तम सभ्यता के खुदेघात करेइय्या सुभाव अऊ सांति ऊपर पोंडा समझ के बखिया उधेड़त हवय

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Poem and Text

Jitendra Vasava

गुजरात के नर्मदा ज़िला के महुपाड़ा बासिन्दा जितेंद्र वसावा एक कवि आंय, जेन ह देहवली भीली में लिखथे. वो ह आदिवासी साहित्य अकादमी (2014) के संस्थापक अध्यक्ष, अऊ आदिवासी आवाज़ मन ला जगा देके कविता केंद्रित पत्रिका लखारा के संपादक आंय. वो ह आदिवासी मौखिक साहित्य ऊपर चार किताब घलो प्रकाशित करे हवंय. वो ह नर्मदा ज़िला के भील मन के मौखिक लोककथा के सांस्कृतिक अऊ पौराणिक डहर ऊपर शोध करत हवंय. पारी मं प्रकाशित कविता मन ओकर अवेइय्या पहिली कविता संग्रह के हिस्सा आय.

Painting

Labani Jangi

लाबनी जंगी पश्चिम बंगाल के नादिया जिला के रहेइय्या, खुदेच चित्रकारी सीखे हवंय. वो ह साल 2025 के टी.एम. कृष्णा-पारी पुरस्कार के पहिला विजेता आंय अऊ साल 2020 मं पारी फेलो घलो रहे हवंय. लाबनी सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेज, कोलकाता मं मजूर मन के पलायन ऊपर पीएचडी करत हवंय.

Editor

Pratishtha Pandya

प्रतिष्ठा पंड्या पारी मं वरिष्ठ संपादक हवंय, वो ह पारी के रचनात्मक लेखन अनुभाग के अगुवई करथें. वो ह वह पारी भाषा टीम के सदस्य घलो आंय अऊ गुजराती मं कहिनी मन के अनुवाद अऊ संपादन करथें. प्रतिष्ठा गुजराती अऊ अंगरेजी के कवयित्री आंय.

Translator

Nirmal Kumar Sahu

निर्मल कुमार साहू पारी के छत्तीसगढ़ी अनुवाद संपादक आंय. पत्रकार अऊ अनुवादक के रूप मं वो ह छत्तीसगढ़ी अऊ हिंदी दूनों भाखा मं काम करत हवंय. निर्मल ला छत्तीसगढ़ के प्रमुख समाचार पत्र मन मं तीन दसक के अनुभव हवय अऊ वो ह ये बखत देशडिजिटल न्यूज़ पोर्टल के प्रधान संपादक हवंय.